हे सारे जहानों के पालनहार!
मैं तेरे अनगिनत अनुग्रहों और कृपाओं के लिए तेरा शुक्रिया अदा करने में असमर्थ हूँ।
तू रहम करने वाला और बड़ा मेहरबान है,
और तेरी दी हुई नेमतें बेहिसाब हैं।
मेरे गुनाह माफ़ कर दे,
कहीं मैं बरबाद न हो जाऊँ।
मेरे दिल को अपने सच्चे प्यार से भर दे,
ताकि मुझे ज़िन्दगी मिल सके।
मेरी कमियों को ढाँक दे,
और मुझे ऐसे अमल करने की तौफ़ीक़ दे
जो तेरी रज़ा (खुशी) का ज़रिया बनें।
मैं तेरी पनाह माँगता हूँ,
तेरे जलाल और नूरानी चेहरे की इज़्ज़त की कसम,
मुझ पर तेरी सज़ा न उतरे।
मुझ पर रहमत कर,
और मुझे इस दुनिया और आख़िरत की मुसीबतों से बचा ले।
क्योंकि रहमत और करम का मालिक सिर्फ तू ही है।
आमीन, सुम्मा आमीन।
---[क़ादियान के वादा किए गए मसीह हज़रत मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद (अ.स.) की एक प्रार्थना (1835-1908), मूल रूप से अल-हकम, खंड 2, संख्या 1, दिनांक 20 फ़रवरी 1898, पृष्ठ 9 में प्रकाशित।]
